शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009

लोहे में जंग से सालाना 2 लाख करोड़ की चपत


जाली म्रुा और भ्रष्टाचार ही नहीं बल्कि क्षरण हमारी अर्थव्यवस्था को खोखला कर रहा है। क्षरण से होनेवाले सालाना नुकसान पर गौर करें तो यह भारत नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए आज का रावण है। क्षरण के चलते हर साल भारत को ही 2 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। इतने बड़े नुकसान के बावजूद क्षरण को लेकर कें्र सरकार गंभीर नहीं है। उचित उपायों के जरिए नुकसान को 30 से 35 प्रतिशत के बीच कम किया जा सकता है।
क्षरण से होनेवाले भारी नुकसान से बचाव पर मंथन के लिए आर्थिक राजधानी में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन मंगलवार से शुरू होनेवाला है। इसका आयोजन एनएसीई ने किया है। सम्मेलन को वर्ल्ड कॉरकॉन 2009 नाम दिया गया है। इसमें देश-विदेश की बड़ी कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ ही रक्षा क्षेत्र के जानकार भी शिरकत करनेवाले हैं। विज्ञान व प्रौद्योगिकी मामलों के कें्रीय मंत्री पृ्थ्वीराज चव्हाण सम्मेलन का उद्घाटन करेंगे। इसमें तेल व गैस, परिवहन, लॉजिस्टिक्स, शि¨पग, इंफ्रास्ट्रक्चर, रियल्टी क्षेत्र की कंपनियां बढ़-चढ़ कर हिस्सेदारी कर रही हैं।
पीएसएल होल्डिंग्स के कार्यकारी निदेशक और कॉरकॉन 2009 के अध्यक्ष राजन बाहरी के मुताबिक क्षरण भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लिए बड़ी चुनौती है। उनके मुताबिक आजादी के बाद की प्राकृतिक आपदाओं के मुकाबले कहीं ज्यादा कीमत क्षरण के मोर्चे पर भारत ने चुकाई है। अमेरिका और जापान जसे विकसित देशों के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में सालाना आधार पर 3 प्रतिशत घाटा क्षरण के कारण हो रहा है।
बाहरी का आकलन है कि बुनियादी सुविधाओं को सालाना आधार पर क्षरण के चलते 22,600 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। बहुपयोगी सेवाएं इसके चलते 47000 करोड़ गंवा रही हैं। उत्पादन और निर्माण इकाइयों को 17,650 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। साथ ही 20 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान रक्षा क्षेत्र और परमाणु कचरा प्रबंधन से जुड़ी सुविधाओं के क्षरण से हो रहा है। घरेलू अर्थव्यवस्था को लगभग 2 लाख करोड़ रुपए का नुकसान क्षरण पहुंचा रहा है।