मंगलवार, 15 सितंबर 2009

आखिरकार मंद पड़ने लगी मंदी

संकट आने के बा सतर्क हुई सरकारें

श्लिेषकों का यह भी मानना है कि इस संकट के बा आर्थिक ुनिया में उीयमान बाजारों शेिषकर भारत एं चीन की महत्ता बढ़ी है और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक नीतियों का समन्य करते समय इनकी भूमिका महत्पूर्ण हो गई है। भारत एं चीन: ने मजबूत किास र से ुनिया को चौंका यिा।

अमेरिकी निेश बैंक लेहमन ब्र्स के पिछले डूबने से शुरू हुए ैश्कि त्तिीय संकट को एक साल होने जा रहा है। इस संकट से ुनिया ने काफी कुछ सीखा। ेशों ने जहां अधिक सतर्कता बरतनी शुरू की, हीं सरकारों के बाजार ण में भी काफी उछाल ेखा गया। श्लिेषकों का कहना है कि ुनिया भर में हर किसी ने आर्थिक संकट से अनेक सबक सीखे हैं और े त्तिीय जोखिम को लेकर अधिक सचेत हुए हैं। मूडीज इकनॉमी डाटा कॉम के अर्थशास्त्री शरमन चान ने बताया कि सरकारी निकायों ने पर्याप्त नियमन की महत्ता को महसूस किया सीखा। वहीं कारोबारी ुनिया ने ह से अधिक जोखिम लेने के परिणाम ेखे। चान ने कहा कि हम ेखेंगे कि सभी बाजार भागीार और अधिक सतर्क रुख अपना रहे हैं। इसी तरह आर्थिक मंी से निपटने के लिए सरकारों ने र्साजनिक खर्च में अच्छी खासी ृद्धि की।


अर्थव्यवस्था में ण मांग बढ़ रही है और विदेशी पूंजी का प्रवाह भी बढ़ने लगा है। ऐसे में अगले छह महीनों में आप देश की अर्थव्यवस्था में हो रही प्रगति को साफ देख पाएंगे। एक साल पहले अमेरिका के दिग्गज निवेशक बैंक लेहमन ब्रदर्स के धराशायी होने पर वित्तीय तंत्र के स्थायित्व को लेकर गहरी ¨चता जताई गई थी। लेकिन अब हम वित्तीय संकट के उस सबसे खतरनाक दौर से बाहर आ चुके हैं।
-मोंटेक ¨सह आहलूवालिया
योजना आयोग के उपाध्यक्ष

मौजूदा मंदी के दौर का भारत में ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा है। कार, मोटरसाइकिलों की बिक्री में इजाफा ही हुआ है। हर रोज ही नए मॉडल लांच होते रहे और सड़कों पर नई गाड़ियां दिखती रहीं। कई विदेशी कंपनियों ने भारत में आकर अपने कार की लॉन्चिंग की। सस्ते मानव संसाधन की भरपूर उपलब्धता भारत में ऑटोमोबाइल व आईटी इंडस्ट्रीज को बचाने में कामयाब रहा।
-नवीन मुंजाल
हीरो इलेक्ट्रिक इंडिया के एमडी

भारत इस वैश्विक मंदी से अछूता नहीं रहा लेकिन देश की अर्थव्यवस्था शैली तथा उपयुक्त सरकारी निर्देशों के फलस्वरूप मंदी की मार सब क्षेत्रों पर नहीं पड़ी। यूरोप व अमेरिका के कई बैंक, वित्तीय संस्थाएं और कंपनियां दिवालिया हो गईं। लेकिन भारत में किसी भी कंपनी ने मंदी की वजह से कारोबार नहीं समेटा है।
-डॉ. यूडी चौबे
स्कोप के महानिदेशक

मंदी का दौर तो यहां भी आया लेकिन अब वह काले बादल छंट चुके हैं। मुख्य रूप से मंदी का असर ऑटो इंडस्ट्रीज, रियल एस्टेट, एक्सपोर्ट व आईटी सेक्टर पर दिखा। इसमें से ऑटो इंडस्ट्रीज अब पूरी तरह से मंदी के दौर से ऊबर चुका है। रियल एस्टेट भी दिसंबर 2009 तक अपने पुराने रंग में होगा।
-अनिल अग्रवाल
सीआईआई, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चैयरमैन

सरकारी निकायों ने पर्याप्त नियमन की महत्ता को महसूस किया सीखा जबकि कारोबारी ुनिया ने ह से अधिक जोखिम लेने के परिणाम ेखे। भष्यि के बारे में चान ने कहा कि हम ेखेंगे कि सभी बाजार भागीार और अधिक सतर्क रुख अपना रहे हैं। इसी तरह आर्थिक मंी से निपटने के लिए सरकारों ने र्साजनिक खर्च में अच्छी खासी ृद्धि की।
-शरमन चान
मूडीज इकनामी डाटा कॉम के अर्थशास्त्री

मंी में भी बढ़ते रहे कंपनियों के सीईओ के ेतन

ब्रिटेन की शीर्ष कंपनियों के कार्यकारियों के मूल ेतन में पिछले साल के गंभीर त्तिीय संकट के बाजू 10 प्रतिशत का इजाफा हुआ। एक रपट के अनुसार इस ौरान उनको मिलनेोला बोनस घटा है।
‘गार्जियनज् अखबार द्वारा बोर्डरूम के ेतन के श्लिेषण के अनुसार, 2008 में कार्यकारियों का मूल ेतन म्रुास्फीति की तुलना में ोगुना से ज्याा बढ़ा। रेकिट बेंकिंजर के मुख्य कार्यकारी बार्ट बेच सबसे ज्याा ेतन पानेोले कंपनी प्रमुख रहे। उन्हें 2008 के ौरान ेतन, बोनस, भत्ते और शेयर लाभ के रूप में कुल 3.68 करोड़ पाउंड यानी 6.13 करोड़ डॉलर की राशि मिली। टुलो ऑयल के एडन हीे के प्रमुख 2.88 करोड़ पाउंड ेतन, भत्तों और बोनस के साथ ूसरे स्थान पर रहे। तीसरे स्थान पर रहे बीएचपी बिलिटन के तत्कालीन मुख्य कार्यकारी प्रमुख चिप गुडईयर को 2.38 करोड़ पाउंड का पारितोषिक मिला।

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