रविवार, 11 जनवरी 2009

बेरोजगारी बढ़ा गया साल

संजित चौधरी

आर्थिक दृष्टि से साल 2008 काफी उथल-पुथल भरा रहा। वैश्विक अर्थव्यवस्था में छाई मंदी की काली साया से आम भारतीय भी नहीं बच सके। उद्योग जगत की ओर से लागत कम करने के लिए उठाए गए कदमों ने नौकरी-पेशा वालों के लिए समस्या को और भयावह बना दिया। पहले से ही महंगाई की आग में झुलस रहे लोगों के लिए छंटनी आग में घी का काम किया। छंटनी के शिकार लोगों की स्थिति लगातार बद से बदतर हो गई। साल के अंत तक हजारों लोगों को छंटनी का शिकार होना पड़ा।
साल के शुरुआती महीनों में अमेरिकी मंदी से संबंधित खबरें भारतीय समाचार मीडिया में लगभग नहीं थीं। कुछ महीने बाद वैश्विक मंदी और इसकी चपेट में अमेरिकी अर्थव्यवस्था के आने की खबर आने लगी। लेकिन जब अमेरिका का दूसरा सबसे बड़ा बैंक एआईजी के दिवालिया होने की खबरें आईं तो भारतीयों के भी कान खड़े हो गए। खबरें आईं कि अमेरिका में एआईजी के दिवालिया होने से 5 लाख 16 हजार लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा। हालांकि इस समय तक भारतीयों को लग रहा था कि वह सुरक्षित हैं। यह उन से हजारों किलोमीटर दूर विकसित अर्थव्यवस्था की समस्या है। लेकिन जब भारत में भी विभिन्नों कंपनियों से कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाने लगा तो नौकरी-पेशा करने वालों के लिए एक नई मुशीबत खड़ी हो गई।
लागत में कटौती का बहाना कर जेट एयरवेज ने 1,900 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाना चाहा, लेकिन राजनीतिक दबाव के कारण कंपनी को अपना फैसला वापस लेना पड़ा। एयर इंडिया जसी कई कंपनियों ने अपने कर्मचारियों से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने की पेशकश कीं। वहीं कुछ कंपनियों ने कर्मचारियों के वेतन में कटौती कर दीं। इसके अलावा सत्यम, इन्फोसिस जसे बड़ी आईटी कंपनियों ने भी रूटीन प्रक्रिया के बहाने कई हजार पेशेवरों को बाहर निकाल दिया। इसी तरह कई बड़ी दवा कंपनियों ने विपणन कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया। देश में कपड़ा और आभूषण उद्योग में काम करने वाले लोगों के लिए साल 2008 मुश्किलों भरा रहा। रुपया कमजोर होने और निर्यात घटने के कारण इन सेक्टरों में काम करने वाले लोगों की नौकरियों पर भी खतरा मंडराने लगा। एक आकलन के अनुसार अकेले आभूषण उद्योग में लगभग 50,000 लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
साल के दौरान कपड़ा उद्योग की हालत भी पतली रही। रुई के दाम बढ़ने और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से मांग घटने के कारण कई वस्त्र उत्पादक इकाइयां बंद हो गईं। इससे लगभग 7 लाख लोगों की नौकरी चली गई। भारतीय कपड़ा उद्योग संघ के अनुसार इस सेक्टर में बेरोजगारों की संख्या बढ़कर 12 लाख तक पहुंच सकती है। इसी प्रकार कालीन बनाने वाले कारीगर को भी रोजगार के लाले पड़ गए। वैश्विक मंदी के कारण विश्व बाजार से कालीन की मांग में कमी आई। अधिक लागत और निर्यात कम होने के कारण उत्पादन ईकाइयां बंद होने लगीं। इससे कारीगर बेरोजगार होते गए। इसी तरह प्लास्टिक, सीमेंट, इस्पात, रसायन, चमड़ा आदि सेक्टरों में भी साल के दौरान हजारों कामगारों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा। खासकर असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले निम्न और निम्न मध्यम आय समूह के लोगों के लिए इस स्थिति से सामना करना कहीं अधिक कठिन हो गया।

7 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है, खूब लिखें, नियमित लिखें, शुभकामनायें…

Prakash Badal ने कहा…

स्वागत है आपका, फोटो काफी बड़ी है छोटी हो जाए तो ब्लॉग बहुत सुन्दर लगेगा।

Prakash Badal ने कहा…

स्वागत है आपका, फोटो काफी बड़ी है छोटी हो जाए तो ब्लॉग बहुत सुन्दर लगेगा।

Prakash Badal ने कहा…

स्वागत है आपका, फोटो काफी बड़ी है छोटी हो जाए तो ब्लॉग बहुत सुन्दर लगेगा।

Sanjeet Tripathi ने कहा…

स्वागत है हिंदी ब्लॉगजगत में।

क्या आपको नहीं लग रहा कि हेडर में लगी आपकी तस्वीर कुछ ज्यादा ही बड़ी है, कृपया ध्यान दें।

अभिषेक मिश्र ने कहा…

अच्छा विषय उठाया है आपने.
स्वागत ब्लॉग परिवार और मेरे ब्लॉग पर भी.
(gandhivichar.blogspot.com)

Sanjay Grover ने कहा…

आज का दिन ऐतिहासिक है। मैं आपके ब्लाॅग पर आया हूँ।
दरअसल...
इधर से गुज़रा था सोचा सलाम करता चलूंऽऽऽऽऽ
संजय ग्रोवर, संवादघर